भाव तुम्हारे तुम्हें समर्पित, अंतर्मन के धारे हैं, गीतों में भरकर जो आये मन के वेद उचारे हैं||
Saturday, August 27, 2011
नये सपन की बात ... गीता पंडित
..
....
कुहराई है
टहनी - टहनी,
पात - पात
कुहरा आया
फिर भी
नव - पत्तों की बातें
देखो डाली करती है,
शब्द - शब्द में
बहकी
फिरती
भाव - भाव में
टंक आती,
नये
सपन को
देखो अब भी
आँख
मेरी तकती है |
.गीता पंडित.
लोकतंत्र की विजय गर्व है मुझे मैं
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की नागरिक हूँ
और वो देश मेरा अपना है ........... जय हिंद ...
Friday, August 5, 2011
यूँ ही कुछ मन से ......गीता पंडित
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इन अंधेरों में भला क्या सोचना है अब मुझे
रोशनी हूँ रोशनी बन गुनगुनाती आऊँगी,
दीप है मेरा पता ये हाथ में मेरे लिखा है,
दीप की गाथा युगों तक ज्योति बनकर गाऊँगी|
....
मैं वो ज्योति आंधियों में
भी अकेली जो जली हूँ,
नेह के आँगन की बेटी,
पीर में लेकिन पली हूँ |
....
राम रहीम में रहे अलग क्या
सबमें वही समाया,
नेह के बंधन रहें सजीले
मन ने ये दोहराया |
....
दो शेर ( गज़ल से )..
रोक लें उम्र को के जीना है अभी,
शेष रहा जो गरल पीना है अभी |
यूँ गुज़रती जा रही इस जिंदगी के ,
हर फटे आँचल को सीना है अभी |
....
1)
ज़िंदगी में मोड तो आये कई लेकिन ना जाने
कौन सा वो मोड था कि मैं कहाँ पर रुक गया,
रात की सुनसान नगरी, चाँदनी, बेकल पवन
कह रहीं क्या जाने यूँ सर कहाँ पर झुक गया |
.....
2)
किरण की पालकी लेकर नया दिन फिर से आया है
लो जागें आज फिर से हम दिनकर मुस्कराया है,
समय की डोर से बंध कर,करें पूरा हरेक सपना,
जिसे देखा था कल हमने समय फिर आज गाया है|
.....
गीता पंडित
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