एक मुक्तक
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" कृष्ण नाम है प्रेम का और
ममता का है नाम कन्हैय्या
बिन स्नेह के जीवन क्या है
हरेक में है श्याम कन्हैय्या ।"
अधूरा गान
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मैं अधूरा गान तुम बिन
शब्द हो तुम शब्द में भी
मात्रा और वर्ण, बिंदू,
और अंतर में चहकते
कल्पना के सहत्र सिंधू,
नमन तुमको मधुसुदन
मैं अधूरा गान तुम बिन ।
रूप की तुम एक शाला
गंध की हरेक माला,
रंग सजते हैं तुम्हीं में
रंग की एक पाठशाला,
तुम रस की खान "मोहन",
मैं अधूरा गान तुम बिन ।।
गीता पंडित (शमा)
5 comments:
आपकी कविता ".....मधुसुदन" अति-सुन्दर हे !
"मैं अधूरा गान तुम बिन" ...... कितनी गहरी कसक हे इन शब्दों मै ! अंत मै जब लिखा "तुम रस की खान "मोहन", ....." मानो 'अमृत-रस' मै भिगो दिया भीतर तक मन को .......बहुत सुन्दर कविता हे !
हम सब अपने जीवन मै " प्रभु और प्रभु की माया" मै भटक रहे हैं जिस " भेद " को हम समझ कर मिटाना चाहते हैं ! और जब हम अपने भीतर नमन समर्पित होते हैं , तो ये 'भेद' कटने लगता हे !
आपकी कविता मै इस भेद को विलीन करने की चेष्टा हे ; 'शब्द' से शुरू कर 'अमृत-रस' का पान करवाती ये कविता मन-मुग्ध कर रही हे !
आपको आभार वा मुबारकबाद !
अत्यंत भावपूर्ण एवं रसपूर्ण काव्य रचना से भीना भीना परिचय करा दिया आपने ।रचना के माध्यम से 'मधु सूदन' का साक्षात्कार निश्चय ही एक गरिमापूर्ण उपलब्धि है।
बधाई।
कृष्ण सूक्ष्म भी हैं व विराट भी,किंतु शब्द , मात्रा एवं वर्ण मे भी उसकी झांकी भाव-विह्वल करने वाली है।
रूप की शाला व गंध की माला--अनुपम--श्याम का यह रस-गंध में रचा बसा मोहिनी रूप विमोहित कर गया।
मेरा भी नमन-कलाकार को भी और कलाकृति को भी।
मुक्तक बढिया है पर अधूरा गान की बात ही अलग है...
शब्द हो तुम शब्द में भी
मात्रा और वर्ण, बिंदू,
और अंतर में चहकते
कल्पना के सहत्र सिंधू,
मैं अधूरा गान तुम बिन
शब्द हो तुम शब्द में भी
मात्रा और वर्ण, बिंदू,
और अंतर में चहकते
कल्पना के सहत्र सिंधू,...wah ...acha laga aapko padhna ..sabd ho tum sabd mein bhi .....bahut gudh ....
बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति दी...
सचमुच कृष्ण के बिना सब कुछ अधूरा है...
जन्माष्टमी की सादर बधाइयां...
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