Sunday, January 18, 2015

सूरज बाबू .... गीता पंडित



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सूरज बाबू _____



कहाँ छिपा बैठा है सूरज
चिठ्ठी उसको भिजवायें

ठिठुर रही है
देह भोर की
किरण गात कुहराया है
पंछी छिपे हुए कोटर में
भूखा मन
सुबकाया है

दोहरी कमर हुई बरगद की
बैसाखी भी काँप रही
जोड़ जुड़े हैं फेविकोल से
मॉं घुटनों
को जॉंच रही

संग चलो तुम पवन डाकिये
घर - घर उसको दिखवायें

लगा रखी है
कुंडी घर ने
खिड़की द्वारे डरे हुए
बनी देह की कुल्फी कैसी
पौधे भी अब
झरे हुए

जमी बर्फ नेताओं पर भी
लकवे ने जैसे मारा
आम आदमी बिन कंबल भी
अब तक ना
कैसे हारा

हरेक झोपडी को चलकर के
धूप तनिक तो दिखलायें


गीता पंडित 

12 जनवरी 2015


http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/suraj/2015/geeta_pandit.htm