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समय नहीं बख्शेगा तुमको___
रक्त पिपासक
समय हो रहा
अब क्यूँ मूक बने डोलो
प्राचीरों में दबी घुटी सी
सोई किसकी
सिसकी है
तहखानों में बंद राज सी
देखो किसकी
हिचकी है
बच्चा –बच्चा बने सिपाही
गद्दारों को
हो फाँसी
जो भी देश के दुश्मन हैं
वो सारे हों
वनवासी
जात-पात
भाषा के झगड़े
अब तो मन-तन पर तोलो
पैंसठ वर्ष हो गये अब क्यूँ
नहीं दिखा
भाईचारा
कौन यहां जीवित है बोलो
जीवन क्यूँ
खुद से हारा
बंदी हुई भावना क्यूँकर
स्वार्थ हुआ
सब पर भारी
राजतंत्र के सम्मुख घुटने
टेक रही
है लाचारी
समय नहीं
बख्शेगा तुमको
कम से कम अब तो बोलो
_गीता पंडित
२२/९/`१४
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