.....
........
कविते !
आओ ना
देखो
ध्यान से देखो
अकवि होते हुए समय को
देखो सच की अभेद्य प्राचीरों में
सेंध लगाते हुए झूठ को
अगीत होती
सिसकती हुई इस धरा को
ढूँढो
ढूँढो स्वयं को कविते !
इस गद्यात्मक समय को
फिर से सिखाओ
लय ताल में गाना
आह !!!!
बिना तुम्हारे अधूरा है
समय का संगीत
आओ !!!!!
........ ..
गीता पंडित
27 / 8 / 14
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कविते !
आओ ना
देखो
ध्यान से देखो
अकवि होते हुए समय को
देखो सच की अभेद्य प्राचीरों में
सेंध लगाते हुए झूठ को
अगीत होती
सिसकती हुई इस धरा को
ढूँढो
ढूँढो स्वयं को कविते !
इस गद्यात्मक समय को
फिर से सिखाओ
लय ताल में गाना
आह !!!!
बिना तुम्हारे अधूरा है
समय का संगीत
आओ !!!!!
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गीता पंडित
27 / 8 / 14