Monday, April 15, 2013

गीत गाओ तो दर्द होता है...मुकेश मानस (संज्ञान गोष्ठी -एक रिपोर्ट)



7 अप्रैल 2013 को संज्ञान की गोष्ठी हुई। इस बार की गोष्ठी इन्दिरापुरम गाज़ियाबाद में रहने वाली कवियत्री मृदुला शुक्ला जी के घर पर हुई। इस बार की गोष्ठी गीत और ग़ज़ल पर केन्द्रित थी। पांच कवि –गीता पंडित, तहसीन मुनव्वर, मायामृग, आनन्द कुमार द्विवेदी और रवीन्द्र कुमार दास-आमंत्रित थे इस बार की गोष्ठी में। मायाजी और तहसीन साब आ नहीं सके जिसके लिए उन्होंने मुझसेऔपचारिक खेद भी व्यक्त किया। 

आनन्द कुमार द्विवेदी ने एक गीत से गोष्ठी का आगाज़ किया और उन्होंने कई ग़ज़लें सुनाईं। इन ग़ज़लों को सुनकर उनकी ग़ज़लों के बहुआयामीपन से वाकिफ़ हुआ। यह जानकर अच्छा लगा कि आनन्द कुमार द्विवेदी सामाजिक और राजनीतिक रुप से सचेत और गम्भीर ग़ज़लकार हैं। बड़ी ही बेबाकी से आधुनिक समाज के अन्तर्विरोध उनकी ग़ज़लों में अभिव्यक्त होते हैं। 


रवीन्द्र कुमार दास के गीत और ग़ज़ल सुनकर काव्य में उनकी प्रयोगकारी क्षमताओं का पता लगा। उनके गीत और ग़ज़ल पारम्परिक और आधुनिक चेतना के मिश्रण का पर्याय हैं। पता चला कि वे एक गम्भीर कवी ही नहीं, मंझे हुए गीतकार और ग़ज़लगो भी हैं।


इस गोष्ठी में गीता पंडित जी से उनके गीत सुनना एक अद्वितीय अनुभव था मेरे लिए। लग रहा था कि कि मैं किसी नीरव और निरापद जंगल में हूँ और कहीं दूर से एक झरने के गाने की आवाज़ आ रही है। लेकिन झरने का यह गीत सिर्फ़ उसका गीत नहीं था, वह पूरी पृथ्वी का गीत था। और यह गीत कोई शास्त्रीय या पारंपरिक गीत नहीं था यह आधुनिक अन्तरविरोधों और आधुनिक भाषा का गीत था। गीता जी के गीतों की भाषा ही नहीं बल्कि उनके विषय और उनकी प्रस्तुति भी हमें गीत के बने बनाये ढ़ांचे से बाहर की यात्रा कराती है। उनके गीत सुनते-सुनते कई बार आंखें नम हुईं।


श्रोताओं के रुप मौजूद सरिता दास, अंजू शर्मा, नीता पोरवाल, सुरजीत सिंह, सीमांत सोहल, बलजीत कुमार, इन्दु सिंह, रश्मि भारद्वाज, निरुपमा सिंह, चन्द्रकला, ज्योती राय, देवेश त्रिपाठी, अविनाश पांडेय, राजशेखर शर्मा साहिल, प्रखर विहान, अजीत राय, राजीव तनेजा, रमा भारती, संजू तनेजा आदि साथियों ने कवियों की रचनाओं पर बेहद सहज मगर गंभीर बातचीत की्।( किसी मित्र का नाम अगर भूल गया हूँ तो कृपया मुझे करेक्ट करें) मैं लगातार यह देख रहा हूँ कि संज्ञान की गोष्ठियों में रचना और रचनाकर को समझने, जानने और व्याख्यायित करने के प्रति गंभीरता बढ़ती जा रही है। 


मृदुला जी और उनके परिवार के सद्स्यों ने जो खातिरदारी की, जो सम्मान दिया उसके लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं । मैं संज्ञान के सभी साथियों की ओर से मृदुलाजी और उनके परिवार के सभी सद्स्यों-उनके पति, उनकी बेटियां और उनके भाई –सबका बहुत बहुत धन्यवाद करता हूँ। कृपया इस धन्यवाद ज्ञापन को अनंतिम समझा जाये। मुझे यह देख कर अच्छा लग रहा है कि संज्ञान के मित्रों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और यह भी कि संज्ञान लेखकों के बीच एक सामूहिक सृजन की चेतना का विकास कर पा रहा है।



मुकेश मानस 

प्रेषिता 
गीता पंडित