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कोर नयन की
भीगी भीगी
सुबह से ही जगी रही |
कितनी हत्याएँ और चोरी
कहाँ डकैती आज पड़ीं ,
बलात्कार से कितनी सड़कें
फिर से देखों आज सडीं,
मानवता रो रही अकेली
नयनों में लग गयी झड़ी,
भरे चौराहे खडी द्रोपदी
अंतर विपदा रहे खडी ,
हर सुबहा के
समाचार में
ख़बर यही बस एक रही |
खार हुए वो प्रेम प्रेम के
खेतों की फसलें सारी,
क्यूँ अग्नि में झोंकी जाती
वो ममता मूरत प्यारी ,
भाई चारा दिखे कहीं ना
एक पंक्ति भी मिले नहीं,
कैसी है ये पीड़ा मन की
बन जाती नदिया खारी,
मन के बरगद
धूप पसरती
छैय्याँ मन की ठगी रही |
आज समय को हुआ है क्या
कौन किसे समझायेगा,
फिर वो ही पनघट की बातें
औ चौपालें लायेगा,
बुझे हुए हर मन के अंदर
जला आस्था की ज्योति ,
मुस्कानों के फूल खिलाता
हर एक द्वारे जाएगा,
मन मंदिर है
प्रेम का मीते !
बात यही मन सगी रही ||
-गीता पंडित
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कोर नयन की
भीगी भीगी
सुबह से ही जगी रही |
कितनी हत्याएँ और चोरी
कहाँ डकैती आज पड़ीं ,
बलात्कार से कितनी सड़कें
फिर से देखों आज सडीं,
मानवता रो रही अकेली
नयनों में लग गयी झड़ी,
भरे चौराहे खडी द्रोपदी
अंतर विपदा रहे खडी ,
हर सुबहा के
समाचार में
ख़बर यही बस एक रही |
खार हुए वो प्रेम प्रेम के
खेतों की फसलें सारी,
क्यूँ अग्नि में झोंकी जाती
वो ममता मूरत प्यारी ,
भाई चारा दिखे कहीं ना
एक पंक्ति भी मिले नहीं,
कैसी है ये पीड़ा मन की
बन जाती नदिया खारी,
मन के बरगद
धूप पसरती
छैय्याँ मन की ठगी रही |
आज समय को हुआ है क्या
कौन किसे समझायेगा,
फिर वो ही पनघट की बातें
औ चौपालें लायेगा,
बुझे हुए हर मन के अंदर
जला आस्था की ज्योति ,
मुस्कानों के फूल खिलाता
हर एक द्वारे जाएगा,
मन मंदिर है
प्रेम का मीते !
बात यही मन सगी रही ||
-गीता पंडित