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ऐसी आये अब के होली ॥
मन में भरे रंग की झोली,
नेह की भरभर आये टोली,
रंग प्रेम का हर एक बरसे,
बँध जाये फिर मन पर मौली ।
प्रेम भरी हो सब की बोली ।
ऐसी आये अब के होली ॥
तुम ने कैसे रंग लगाये,
मन पलाश से होकर आये,
ढूँढ रही फिर वही अल्पना,
जो अंतर में बनकर आये ।
चूनर पर हो वही रंगोली ।
ऐसी आये अब के होली ॥
नयनों में फिर झूले सपने,
बिन साजन के कैसे अपने,
फिर से आये पवन बसंती,
लगे श्वास को मन से जपने।
उपवन हो हर मन की खोली ।
ऐसी आये अब के होली ॥
जा बसंत !प्रिय को ले आ रे,
मधुमास मेरे अंग खिला रे,
चूनर धानी रंग के लाऊँ,
पैंजनिया को बोल पिला र ।
आ जाये फागुन की डोली ।
ऐसी आये अब के होली ॥
गीता पंडित (शमा)