Thursday, April 28, 2011

सच कहती हूँ ...


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बंजर ज़मीन में

पनपेंगे

बिरवे फिर से




बस

निकालने होंगे

रोडे - पत्थर

तोड़ - तोडकर




उग आये

कांटे - कीकर

काट - छाँटकर




धरती की

सुकोमल देह को

बनाना होगा

समतल




देकर नीर

अपने मन की

सरिता का




देखना

फिर से

एक दिन

लदी होंगी डालियाँ

फूलों से




नहीं

देखना

हाथ की लकीरों को




मृग-

मरीचिका

बन भटकाएँगी




हाँ ....

सच कहती हूँ ||



.. गीता पंडित ..

Saturday, April 23, 2011

हर सुबहा के समाचार में ...गीता पंडित

नवगीत की पाठशाला २२ अप्रैल २०११ को
" समाचार " विषय पर ये नवगीत मेरा ...


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हर सुबहा के
समाचार में
ख़बर यही बस एक रही |




कितनी हत्याएं और चोरी
कहाँ डकैती आज पडी,
बलात्कार से कितनी सड़कें
फिर से देखों आज सडीं,
मानवता रो रही अकेली
नयनों में लग गयी झड़ी,
भरे चौराहे खडी द्रोपदी
अंतर विपदा रहे खडी ,




कोर नयन की
भीगी भीगी
सुबह से ही जगी रही |




खार हुए वो प्रेम प्रेम के
खेतों की फसलें सारी,
क्यूँ अग्नि में झोंकी जाती
वो ममता मूरत प्यारी,
भाई चारा दिखे कहीं ना
एक पंक्ति भी मिले नहीं
कैसी है ये पीड़ा मन की
बन जाती नदिया खारी,




मन के बरगद
धूप पसरती
छैय्याँ मन की ठगी रही |




समाचार को हुआ है क्या
कौन किसे समझायेगा,
फिर वो ही पनघट की बातें
औ चौपालें लायेगा,
बुझे हुए हर मन के अदंर
जला आस्था की ज्योति
मुस्कानों के फूल खिलाता
हर एक द्वारे जाएगा,




मन मंदिर है
प्रेम का मीते !
बात यही मन सगी रही ||





गीता पंडित


दिल्ली ( एन सी आर )

Sunday, April 17, 2011

सुर सजाकर फिर से लायें ....

सोचते क्या सुर सजाकर फिर से लायें
हम बुजुर्गों को हंसाकर फिर से लायें |


इस धुंधलके में भला क्या दिख रहा है
चल चले सूरज उठाकर फिर से लायें |


मातमी धुन है सभी कुछ बिक रहा है
चल चलें खुशियाँ सजाकर फिर से लायें |


हैं अधर चुपचाप आतुर बोलने को
चल चलें शब्दों की गागर फिर से लायें |


नयन हैं रीते बड़े बेकल से " गीता "
चल चले सपनों की चादर फिर से लायें ||



गीता पंडित